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कलाम की आत्मकथा

Authors: Dr. Rashmi

मेरे भाई-बहन पलकें बिछाकर मेरा स्वागत कर रहे थे। मेरे रामेश्वरम पहुँचने पर आस-पड़ोस के सभी लोग ऐसे प्रसन्न हो रहे थे मानो मैं पूरे रामेश्वरम का बेटा हूँ। वैसे, सच तो यह है कि मैं पूरे रामेश्वरम का बेटा था भी। ‘‘अरे कलाम, तू आ गया?’’ ‘‘हाँ चाची, कल शाम ही आया।’’ ‘‘तेरी पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है, बेटा?’’ ‘‘बहुत अच्छी।’’ मैंने हँसते हुए जवाब दिया।

ऐसे ही अनेक प्यार भरे सवाल और आत्मीय बातें मेरे धनुषकोटि के लोग मुझसे रोक-रोककर कर रहे थे। ‘‘बेटा, तुम कमजोर हो गए हो। अपने खाने-पीने का ध्यान रखा करो।’’ ‘‘न तो! कमजोर कहाँ हुआ हूँ, चच्चा! पहले जैसा ही तो हूँ। थोड़ा लंबा हो गया हूँ, इसलिए आपको कमजोर लग रहा होऊँगा।’’ मैंने हँसकर कहा। ‘‘बड़े भाई की दुकान पर जा रहे हो?’’ ‘‘जी।’’ मेरे बड़े भाई मुस्तफा कलाम रेलवे स्टेशन रोड पर परचून की एक दुकान चलाते थे। मैं जब भी घर लौटता तो वे अकसर मुझे अपनी दुकान पर बुला लेते और कुछ देर के लिए दुकान मेरे जिम्मे छोड़ देते। —इसी पुस्तक से

भविष्यद्रष्टा, राष्ट्रसेवी, युगप्रवर्तक, प्रेरणापुरुष, युवाओं के लिए अनुकरणीय व्यक्तित्व भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का संपूर्ण जीवन अत्यंत रोचक एवं पठनीय उपन्यास के रूप में, जो हर पाठक के लिए अनुपम धरोहर है|

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